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बोकारो एनकाउंटर में ढेर हुआ जमुई का कुख्यात नक्सली अरविंद यादव उर्फ अविनाश दा, दो दशकों से बिहार पुलिस के लिए बना रहा था सिरदर्द

बोकारो में आठ नक्सलियों के एनकाउंटर में जमुई का कुख्यात नक्सली अरविंद यादव उर्फ अविनाश दा भी मारा गया। जानें उसके आपराधिक इतिहास, पुलिस हत्याएं और दो दशक तक बिहार में उसका खौफ।

बोकारो : झारखंड के बोकारो जिले में सुरक्षाबलों ने आठ नक्सलियों को एक मुठभेड़ में ढेर कर दिया, जिनमें एक नाम सबसे ज्यादा चर्चा में है, अरविंद यादव उर्फ अविनाश दा। यह वही नक्सली था जिसने बिहार के मुंगेर, जमुई और लखीसराय जिलों में दो दशकों तक आतंक फैलाया। उस पर दर्जनों संगीन केस दर्ज थे, जिनमें पुलिसकर्मियों की हत्या से लेकर बम विस्फोट और हथियार लूट तक शामिल है।

25 साल पहले बना था नक्सली, फिर बना ‘दुर्दांत’

अरविंद यादव करीब 25 वर्ष पहले नक्सली संगठन से जुड़ा था और समय के साथ वह स्पेशल एरिया कमेटी का सदस्य बन गया। उसने बिहार के कई नक्सल प्रभावित जिलों में सुरक्षा बलों पर घातक हमले किए। उसका नाम न केवल घटनाओं में आता रहा, बल्कि वह पुलिस रिकॉर्ड में मोस्ट वॉन्टेड नक्सली की सूची में भी शामिल था। उस पर 3 लाख रुपये का इनाम घोषित था।

लखीसराय के जंगलों में किया गया था थानेदार की हत्या

29 अगस्त 2010 को लखीसराय जिले के कजरा थाना क्षेत्र में हुए भीषण हमले में अरविंद की भूमिका सबसे ज्यादा चर्चित रही। नक्सलियों ने कवैय्या थाना के थानेदार भूलन यादव की हत्या कर दी थी। साथ ही बीएमपी के जवान लुकस टेटे को अगवा किया गया था और 7 अन्य पुलिसकर्मियों की हत्या कर उनके शव जंगल में फेंक दिए गए थे। यह घटना बिहार की अब तक की सबसे बड़ी नक्सली घटनाओं में से एक मानी जाती है।

केन बम का मास्टरमाइंड

अरविंद यादव को केन बम लगाने का विशेषज्ञ माना जाता था। 2009 में सोनो चौक पर पेट्रोलिंग पार्टी पर हमला करते हुए उसने एक अफसर समेत 4 जवानों की हत्या कर दी थी और उनके हथियार लूट लिए गए थे। इसके अलावा:

14 सितंबर 2024: पानीचुआं–बरमोरिया रोड पर पुलिस वैन को उड़ाने के लिए केन बम लगाया

28 जुलाई 2017: नैनीपत्थर जंगल में विस्फोटक लगाया

13 मई 2017: ठेलपत्थर जंगल में पुलिस को निशाना बनाने की कोशिश

हर बार उसका मकसद सिर्फ एक होता – पुलिसकर्मियों को मारना और हथियार लूटना। कई बार उसकी साजिशें नाकाम रहीं, लेकिन कई बार उसने सुरक्षा बलों को बड़ा नुकसान पहुंचाया।

इंटरसिटी ट्रेन पर हमला और हथियार लूट

अरविंद यादव का आतंक केवल जंगलों तक सीमित नहीं था। कुंदर हॉल्ट पर इंटरसिटी ट्रेन में सफर कर रहे एक सब-इंस्पेक्टर की हत्या भी उसी के गिरोह ने की थी और उसका हथियार भी लूट लिया गया था। यह घटना दिखाती है कि उसका नेटवर्क कितना विस्तार लिए हुए था।

दो दशक तक बना रहा सुरक्षा बलों के लिए सिरदर्द

अरविंद यादव के नाम से बिहार पुलिस और अर्धसैनिक बलों के जवानों में डर था। उसकी उपस्थिति का मतलब होता था – किसी बड़ी घटना की तैयारी। वह अकेला ऑपरेटर नहीं बल्कि रणनीति और योजना बनाने वाला नक्सली नेता था।

एनकाउंटर में उसकी मौत के बाद बिहार और झारखंड पुलिस को एक बड़ी राहत जरूर मिली है, लेकिन यह भी साफ है कि अरविंद जैसा नेटवर्क बनाने वाला नक्सली अकेला नहीं था। अब भी कई नक्सली संगठन इसी तरह के विचार और रणनीति के साथ काम कर रहे हैं।

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